AGPH Store

जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा

999.00

Availability: 6 in stock

Best Quality

Premium products crafted with care, ensuring long-lasting durability and reliability.

Good Shipping

Fast, secure delivery with reliable courier services for your benefits.

Cost Effective

Affordable pricing, discounts, and exceptional value without compromising quality.

जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा

999.00

Availability: 6 in stock

Best Quality

Premium products crafted with care, ensuring long-lasting durability and reliability.

Cost Effective

Affordable pricing, discounts, and exceptional value without compromising quality.

Good Shipping

Fast, secure delivery and easy with reliable courier services for your benefits of the customer.

Excellent Service

Dedicated support team available to assist with any questions or concerns.

जनजातीय समुदाय का जीवन समाधान व संतोष से भरा हुआ है और इसका कारण उनकी सहज जीवन शैली है। जनजातीय लोगों ने सदियों से अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रखा है। जनजातीय लोगों के रहन-सहन के तरीके बहुत ही विशिष्ट है। घर आंगन की बनावट, अनाज का भंडारण, पानी ठंडा रखने के नैसर्गिक तरीके, प्याज लहसुन और मक्खन के संग्रहण के परंपरागत तरीके, तुमडे की चम्मच, पानी लाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाला चौमल इत्यादि अपने आप में बड़े ही यूनिक है।
पिथौरा चित्रकला जनजातीय जीवन शैली की एक बड़ी ही महत्वपूर्ण विशेषता है जो की सहज ही हमारा ध्यान आकर्षित करती है। इस चित्रकला में जनजातीय जीवन के लगभग हर पहलू से जुड़ी गतिविधियों और क्रियाकलापों को शामिल किया जाता है।
जनजातीय समुदाय पर्यावरण और प्रकृति के महत्व को भली भांति जानता समझता है। ये प्रकृति पूजक है और पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। जैसे खाखरे के पत्ते की पूजा, खाखरे के पत्ते से बनी पत्तल और दोने का उपयोग और उपयोग के बाद उन्हें जमीन में गाड़ देना, कपास और तुवर निकालने तथा मक्के के दाने निकलने के बाद उनके बचे हुए अवशेष को ईंधन की भांति इस्तेमाल करना इत्यादि।
गाय- गौरी और गोवर्धन पूजा उनके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। विभिन्न प्राकृतिक जड़ी बूटियों के चमत्कारिक प्रभाव का इन्हें परंपरागत ज्ञान है. इसका साक्षात प्रमाण यह है कि कोविड महामारी के दौरान जनजातीय समुदाय इसके प्रभाव से लगभग बेअसर रहा। प्रकृति की गोद ही जनजातीय समुदाय की कर्मभूमि और अध्यात्म भूमि है। कर्म और अध्यात्म के इस अनूठे संगम से पिथौरा चित्रकला का उदय हुआ।
कोई भी कार्य या मान्यता पूरी होने पर पिधौरा बनाया जाता है। पिथौरा केवल एक चित्रकलाना होकर भील राठवा समुदाय की संपूर्ण जीवन शैली है। इसमें सूरज, चांद, घोडे, बैलगाडी, ताड़ी के पेड़, जानवर, झोपडी, मचान, गुलेल, हासिया, ताड़ी निकलना, हुक्का पीना, तीर धनुष, शिकार करना, कुएं, मटके, अनाज के भंडार, खेती करना पारंपरिक पूजा करना इत्यादि को स्थान दिया जाता है।
जनजातीय समुदाय की सहजता और सरलता तथा उनके जीवन के सांस्कृतिक, कलात्मक और आध्यात्मिक पहलू को मैंने झाबुआ और अलीराजपुर की अपनी पदस्थापना के दौरान महसूस किया और आत्मसात किया। पिछले डेढ दशक की अवधि में पिथौरा शैली और गोंडी शैली की चित्रकला की विशेषताओं को जो में आत्मसात कर पाई. उसके माध्यम से जनजातीय जीवन को आपके समक्ष प्रस्तुत करने व जनजातीय जीवन शैली की अनूठी आभा से आपको परिचित कराने का यह एक विनम्र प्रयास है। मेरी स्मृतियों के विशाल संग्रह के एक अल्प अंश का संकलन, चित्रों के माध्यम से यहां प्रस्तुत हुआ है। मुझे विश्वास है कि यह संकलन सहृदय, कला प्रेमी पाठकों के हृदय को स्पर्श करने में सफल होगा।

Q & A

Ask a question
जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा
Your question
* Question is required
Name
* Name is required
* Please tick the checkbox to proceed
There are no questions yet
Weight 0.350 kg
Dimensions 23 × 15 × 2.5 cm
Name of Author

डॉ. सीमा अलावा

ISBN Number

978-93-49028-61-6

No. of Pages

115

Customer Review

Add a review
जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा जनजातीय रूपक: पिथौरा और गोंड चित्रकला की सांस्कृतिक आभा
Rating*
0/5
* Rating is required
Your review
* Review is required
Name
* Name is required
Add photos or video to your review
0.0
Based on 0 reviews
5 star
0%
4 star
0%
3 star
0%
2 star
0%
1 star
0%
0 of 0 reviews

Sorry, no reviews match your current selections

Shopping Cart